वैन (कन्नौज ब्यूरो - अलीमुद्दीन) :: ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के आह्वाहन पर शरिया अदालत या दारुल कजा की शुरुआत कनौज के मदरसा इस्लामियां बदरूल उलूम हाजीगंज में हुई जहां ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी मौलान खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने इसकी नींव रखी।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड आने वाले दिनों में मुल्क के सभी जिलों में दारुल कजा यानी शरिया अदालत की शुरुआत करेगा। इस वक्त मुल्क में करीब 200 शरिया अदालतें काम कर रही हैं। इस साल 10 नई शरिया अदालत शुरू होंगी, जिनमें पहली की शुरुआत उत्तर प्रदेश के जनपद कन्नौज में की गई। 23 जुलाई को गुजरात के सूरत में भी इसकी शुरुआत होगी।
इत्रनगरी में दारुल कजा यानी शरिया अदालत की शुरुआत के मौके पर पहुंचे ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के जनरल सेक्रेटरी मौलान खालिद सैफुल्लाह रहमानी ने बताया कि दारुल कजा को खाप पंचायत बताना या अदालत के समकक्ष बताना सरासर गलत है। उन्होंने बताया कि यह सिलसिला आजादी के पहले से ही मुल्क में चल रहा है। इसमें मुस्लिम परिवारों के घरेलू झगड़ों, पति-पत्नी के बीच मन मुटाव को दूर किया जाता है। तलाक के कई मामले दारुल कजा में आकर खत्म हो जाते हैं। खुद मुल्क की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी प्रशंसा की है। दारुल कजा में कई बार गैर मुस्लिमों के मसलों का हल भी किया गया है। इनके फैसले कई बार गैर मुस्लिमों के हक में भी गये हैं लेकिन इस वक्त सियासी तंजीमों और मीडिया इसे गलत नजरिया से पेश कर रहा है। साथ ही उन्होंने कहा कि हम तो समाज के अंधकार को दूर कर रहे हैं। दारुल कजा को शरिया अदालत कहना भी गलत है। उन्होंने कहा कि दिल्ली में बोर्ड की बैठक में इस साल 10 नए दारुल कजा खोलने की मंजूरी मिली है। यह इलाकाई लोगों की मांग पर खोला जाता है। मुल्क के सभी जिलों में खोलने की तैयारी की जा रही है। जितने ज्यादा दारुल कजा खुलेंगे, मसलों का हल उतना ही ज्यादा होगा। इससे सबसे ज्यादा फायदा औरतों को होगा।
अदालतों पर है मुकदमों का बोझ, काम आसान कर रहा शरिया कोर्ट।
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की दारुल कजा कमेटी के कनवेनर मुफ्ती अतीक अहमद कासमी ने कहा कि इस वक्त मुल्क की सभी अदालतों में मुकदमों का अम्बार है। इसमें घरेलू मामलों के भी कई मुकदमे में हैं। मुकदमों का बोझ कम करने के लिए लोक अदालत और ऐसा ही कई कॉन्सेप्ट अमल में लाया जा रहा है। ऐसे में दारुल कजा जिसे मीडिया शरिया अदालत कहता है, काफी कारगर साबित हो रहा है। आपसी मनमुटाव और तलाक के कई मसलों का आसानी से एक ही दिन में किया गया है।
दारुल कजा से तलाक के मामलों में आएगी कमी
मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी और मुफ्ती अतीक अहमद कासमी ने कहा कि तीन तलाक का जो मुद्दा उछाला जा रहा है, वह इस्लाम में है ही नहीं। इस्लाम में कहीं पर भी एक बार में तीन तलाक बोलने का हुक्म नहीं है। अदालत का जो फैसला आया है, वह इस पर कोई बयान नहीं देंगे, लेकिन यह जरूर कहेंगे कि तीन तलाक बोलना गुनाह है। मुल्क में इक्का-दुक्का मामलों को छोड़ दें तो ऐसा कहीं नहीं हुआ है। इस्लाम और मुसलमानों को बदनाम किया जा रहा है। कहा कि दारुल कजा के शुरु होने से इसकी गलत फहमी दूर होगी। तलाक के जो मामले हैं, उसमें भी कमी आएगी।
क्या है शरिया अदालत
ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने देश के सभी जिलों में दारुल कजा यानी इस्लामिक शरिया अदालत खोलने का एलान किया है जिसके बाद पुरे देश में बहस इस पर चल पड़ी है। भाजपा को इस एलान में हिन्दू वोटों को धुर्वीकरण का मौका दिख रहा है वो इस मौके को पूरी तरह भुनाने में लग गयी है। इस मामले पर भाजपा के नेताओ का बयान आया था कि देश के संविधान के अलावा कोई भी समानांतर अदालत नहीं होनी चाहिए, वहीं ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इसको सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप बता रहा है।
शरिया कोर्ट?
दारुल कजा इस्लामिक शरिया कानून के अनुसार फैसले देती है. यहाँ पर पारिवारिक मामले और प्रॉपर्टी का विवाद का निपटारा किया जाता है। इसमें आमतौर पर मुसलमानों के मामले जैसे शादी, तलाक, जायदाद का बंटवारा, लड़कियों को जायदाद में हिस्सा देना आमतौर पर शामिल होता है. दारुल कजा में एक या उससे अधिक जज हो सकते हैं, जिन्हें काजी कहा जाता है।
काजी इस्लामिक शरिया के विद्वान होते हैं. वर्तमान में ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड देश भर में 50 ऐसे दारुल कजा संचालित कर रहा हैं। आमतौर पर सुन्नी मुसलमान दारुल कजा को मान्यता देते हैं। बोर्ड 1993 से देश में दारुल कजा संचालित कर रहा है। अब बोर्ड का इरादा है कि देश के हर जिले में कम से कम एक दारुल कजा की स्थापना कर दी जाए।
बोर्ड क्यों बना रहा है शरिया कोर्ट?
पिछले दिनों मुसलमानों के कई मामले जैसे ट्रिपल तलाक, निकाह और हलाला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गए. केंद्र सरकार भी ट्रिपल तलाक के विरोध में आ गई। बोर्ड को ऐसे में अपनी स्ट्रेटेजी बदलनी पड़ी। बोर्ड का मंतव्य है कि मुसलमानों के पारिवारिक मामले दारुल कजा से निपटाए जाएं। ऐसा करने से खर्चे की बचत, विवाद का जल्द फैसला और इस्लाम के अनुसार निपटारा संभव है। लेकिन बात इस पर चली गई कि क्या मुसलमान भारत में अपने लिए अलग अदालत लगा लेंगे।
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