Menu
उत्तर प्रदेश (ब्रजकिशोर शर्मा - आगरा - 08.11.2021) :: आगरा के थाना फतेहपुरसीकरी क्षेत्र में चाय और पंचर की दुकान चलाने वाले एक पांचवी पास व्यक्ति ने अपने साथियों के साथ मिलकर 14 वर्षों की मेहनत के बाद हवा के दबाव से चलने वाला इंजन तैयार किया है। अपना सबकुछ खत्म कर इंजन बनाने वाले इन साथियों को अब सरकार से आस बची है। उनका कहना है की अगर यह इंजन बाजार में आ जाये तो रेलगाड़ी से लेकर मोटरसाइकिल तक को इस तकनीक से चलाया जा सकेगा और देश में बढ़ते वायु प्रदूषण की समस्या को दूर किया जा सकेगा। ऐसे आया था इंजन बनाने का विचार जानकारी के मुताबिक थाना फतेहपुरसीकरी के निवासी त्रिलोकी 50 पंचर बनाने और चाय का खोखा चलाते थे। उन्हें ट्यूबबेल के इंजन बनाने का भी काम आता था। त्रिलोकी के अनुसार एक दिन पंचर ट्यूब में हवा के टैंक से हवा भरते समय टैंक का वाल लीक हो गया। हवा के दबाव से टैंक का इंजन उल्टा चलने लगा। हवा की ताकत को देखकर उनके मन मे यह विचार आया की हवा से अगर मशीन चले तो खर्चा कितना कम हो जाएगा और वो तब से इसी धुन में लग गए। यह है तकनीक का सूत्र त्रिलोकी की टीम में शामिल संतोष चाहर ने बताया कि पूरी टीम में सिर्फ वो ही ग्रेजुएट हैं और बाकी सब पांचवी तक ही पढ़े हैं। कोई भी इंजन बनता है तो वो इंसान के शरीर की तरह काम करता है। हमने इस मशीन में इंसान के फेफड़ों के जैसे दो पम्प लगाये हैं। इंजन को अभी हाथ से घुमाकर हवा का प्रेशर बनाकर स्टार्ट किया जा सकता है और फिर यह इंसानी फेफड़ों की तरह हवा खींचता और फेंकता है। हवा के दबाव से इंजन चलता है। हमारा तैयार इंजन हमने लिस्टर इंजन की बॉडी और व्हील से बनाया है। इसमें पुर्जों को काम करने के लिए मोबिल ऑयल की जरूरत पड़ती है। पेट्रोल या डीजल से चलने वाले इंजनों की तरह इसमें मोबिल ऑयल गरम नहीं होता है और इसके आयल में डीजल या पेट्रोल गाड़ियों के इंजन से तीन गुना ज्यादा समय तक आयल में चिकनाई बनी रहती है। खुद के खर्च पर बनाया इंजन हवा से चलने वाला इंजन बनाने वाली टीम के मुखिया त्रिलोकी निवासी गांव नगला लोधा कौंरई हैं। जिनके साथ सन्तोष चाहर निवासी गांव नारौल फतेहपुर सीकरी , चन्द्रभान निवासी नगला लोधा कौंरई फतेहपुर सीकरी , रामप्रकाश पन्डित निवासी गांव कौंरई फतेहपुर सीकरी , अर्जुन सिंह निवासी गांव खेरिया विललोच, रूपवास निवासी भरतपुर, रामकुमार निवासी गांव मगौली फतेहपुर सीकरी आगरा ने साथ दिया है। बतौर त्रिलोकी इंजन बनाने में उनका 50 लाख कीमत का एक प्लाट और खेत बिक गए। अन्य साथियों की जमापूंजी भी लग गयी। बिना किसी अनुदान के उन्होंने यह इंजन बनाया है। दो साल से नहीं हुआ पेटेंट संतोष चाहर के अनुसार दिल्ली में बौद्ध विकास विभाग में सितम्बर 2019 को इंजन पेटेंट कराने का आवेदन किया गया था। तब हमारा इंजन तैयार नहीं था। बिना चालू इंजन दिखाए पेटेंट नहीं हो पा रहा था। इसके लिए पुर्जे कहीं मिलते नहीं थे। खुद वेल्डिंग कर और खराद मशीनों पर काम करवाकर हमने पुर्जे तैयार किये और इस दीपावली हमारा इंजन स्टार्ट हो रहा है और काम भी कर रहा है। हमारे पास अब कुछ बचा नहीं है और अब हमें सरकार से आस है की वो हमारी मदद करे, क्योंकि अब अगर हमारा इंजन पेटेंट हो भी गया तो फैक्ट्री लगाने की हमारी हैसियत नहीं है। बाजार में आया इंजन तो खत्म होगा प्रदूषण त्रिलोकी नाथ का कहना है कि उनके इंजन में हवा का कोई रूप नहीं बदलता है, यह सिर्फ दबाव के जरिये काम करता है। बाजार में इस इंजन के इस्तेमाल होने से वायु प्रदूषण बिल्कुल खत्म हो सकता है। इंजन बनाने वाले त्रिलोकी का कहना है कि हवा से चलने वाला इंजन यह जेम्स वाट की स्टीम व जर्मन के रेडॉल्स के डीजल इंजन की बराबर ही ताकत रखता है, यदि है इंजन भारत में चलाया जाता है तो इससे डीजल व पेट्रोल से निजात मिल सकती है।इस इंजन को बनाने के दौरान ग्रामीण मैं 14 वर्ष तक अपने परिवार से अलग रहा और हाईवे किनारे टोल प्लाजा के समीप झोपड़ी को अपना निवास बना लिया था ।
On Thu, Nov 21, 2024
On Wed, Nov 20, 2024