यह वक्त गुजर जाएगा... ... ...



आइना दिखा के, यह दौर भी गुजर जाएगा,
समय रुकता कहां है भला, चला ही जाएगा।

बिहार (पटना) सुजाता प्रसाद :: सच में कोविड 19 ने मानव जाति को असाधारण दुःख दिया है और इससे पैदा पीड़ा जल्दी ख़त्म होने वाली नहीं है। कोरोना वायरस से होने वाली बीमारी अब तक लाइलाज़ है। कहते हैं कोरोना संक्रमण होने से सांस लेना मुश्किल हो जाता है और ऐसा लगता है कि कुछ डूब रहा, सब कुछ हमसे दूर जा रहा है। जब तक कोई ठोस उपचार का तरीका नहीं मिल पा रहा है तब तक हमारी बेबसी हमारे साथ ही चलती रहेगी। हालांकि भारत और हर देश के वैज्ञानिक अपने शोध में लगे हुए हैं लेकिन सचमुच इस बीमारी का महामारी बन कर आना संपूर्ण मानव समुदाय के लिए त्रासदी है।

हम सब जानते हैं कि अभी हम सिर्फ़ इंसानी बर्ताव को नियंत्रित कर रहे हैं, हमें वायरस से निपटने का एक भी तरीका नहीं मिला है। हम सब यह भी जान चुके हैं यह वायरस अब अपने पुराने लक्षण नहीं दिखा रहा है, बल्कि यह अपने लक्षण छुपा रहा है। यह अलाक्षणिक हो गया है। एक अलग स्तर की इंटेलीजेंसी के साथ यह वायरस कई सारी नई क्षमताएं दिखा रहा है। डॉक्टरों के शोध के अनुसार यह सिर्फ श्वसन संबंधी समस्या ही नहीं उत्पन्न करता है बल्कि गंभीर रूप से इम्यून सिस्टम पर भी हमला कर रहा है। इनके गहन अध्ययन से तो यह भी बात सामने आई है कि कोविड 19 हमारे स्नायु तंत्र पर भी असर डाल रहा है।

आंकड़ों के अनुसार बहुत बड़ी संख्या में लोग जान गंवा चुके हैं। कोरोना वायरस ने अरबों लोगों के जीवन को उलट दिया है। किसी ने कितना सही लिखा है कि "सारे मुल्कों को नाज़ था अपने अपने परमाणु पर, क़ायनात बेबस हो गई एक छोटे से विषाणु पर।" ऐसी स्थिति में लॉकडाउन में छूट देना हम सबको पता है कि यह हमें कहां ले जाएगा? लेकिन लॉकडाउन में रहकर भी हम शायद उसी स्थान पर हैं। ऐसे में निर्णय लेना बहुत ही गंभीर मुद्दा है। मुश्किल भरी जिम्मेदारी है, क्योंकि कोई भी फैसला लेना उसके होने वाले संभावित परिणामों की ओर भी इशारा करता है।

लॉकडाउन प्रक्रिया पूरी होने के बाद हमें सोचना चाहिए कि हमें क्या करना है और क्या नहीं। यह कटु सत्य है कि कोरोना से पूरे विश्व की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। अर्थव्यवस्था का प्रश्न आज पूरी दुनिया का संघर्ष है। कोरोना संकट काल में कोई भी फैसला लेने और लागू करने से पहले मूल्यांकन करना बहुत जरूरी है। किसी भी निर्णय पर यूं ही हामी भर देना नहीं, बिल्कुल नहीं। हालात को देखते हुए हम नियमों और शर्तों के साथ लॉकडाउन से मुक्त तो हो जाएंगे, लेकिन इसे सफल बनाना हम सबकी कोशिशों से ही संभव हो पाएगा। और अब जब लॉकडाउन की अवधि 31 मई तक बढ़ा दी गई है तब यानी लॉकडाउन 4 में आत्मनिर्भर भारत आगे बढ़ पाने में कितना सक्षम है यह भी हमें ही तय करना होगा।

फिलहाल स्थिति अब भी वैसी ही बनी हुई है, बल्कि छूट के साथ बिगड़ी हुई स्थिति का भी सामना करना पड़ सकता है। इससे कैसे निपटें, यही असली चुनौती है। हम आज तक जैसे रहन सहन अपनाते आएं हैं इसके बारे में हमें सोचना है कि इसमें बदलाव करना चाहिए, क्योंकि हम पहले की तरह जीवन यापन जारी नहीं रख सकते। संघर्ष के इस समय में निसंदेह हमें अपनी जीवन शैली में परिवर्तन लाना ही होगा। बदली हुई व्यवस्था में जीवन जीने की पद्धति में मास्क लगाना, कम से कम एक मीटर की दूरी यानी सोशल डिस्टेंसिंग और हैंड सैनिटेशन को अनिवार्य रूप से अपनाना होगा। अपने रोग-प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करने के लिए अपनी दिनचर्या में योग और भोजन में पोषक तत्वों को शामिल करना होगा। मतलब स्पष्ट है कि अब हमारी समझदारी पर ही हमारा अस्तित्व संभव है। हमारी उम्मीद हमें इस मुश्किल दौर से निकालने में हमारी मदद जरूर करेगी।

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