पितृ दोष मुक्ति का सर्वोत्तम समय

पटना (रामा शंकर प्रसाद) :: पितृपक्ष पितृ दोष से मुक्ति प्राप्त करने का सर्वोत्तम समय होता है। इस पक्ष में समर्पण की भावना से श्रद्धापूर्वक किया गया तर्पण पितरो को स्वीकार होता है, जिससे हर तरह की बाधा से मुक्ति मिल जाती है। श्रद्धा भाव के साथ किया गया श्राद्ध कर्म व्यक्ति के जीवन में खुशियों का अंबार ला सकता है। पृथ्वी लोक में माता-पिता एवं पितृ साक्षात देवता हैं, इसीलिए उनकी आत्मा की शांति के लिए आश्विन कृष्ण पक्ष में श्रद्धा विश्वास एवं उत्साह के साथ दान-तर्पण किया जाता है। जिस तिथि पर पूर्वजों की मृत्यु हुई हो, उसी तिथि को श्राद्ध कर्म किया जाता है।

जानकारी के अनुसार कहा गया है कि आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तक पूरे पंद्रह दिन यमराज पितरों को मुक्त कर देते हैं और समस्त पितर अपने-अपने हिस्से का ग्रास लेने के लिए अपने वंशजों के समीप आते हैं, जिससे उन्हें आत्मिक शांति प्राप्त होती है। पितरों को जब जल और तिल द्वारा पितृपक्ष में तर्पण किया जाता है, तब उनकी आत्मा तृप्त होती है और उनका आशीष कुटुंब को कल्याण के पथ पर ले जाता है। मध्याह्न व्यापिनी तिथि में श्राद्ध करना शास्त्रोंक्त माना गया है। पितरों को महाविष्णु के रूप में मान्य करते हुए उनकी प्रसन्नता के लिए ब्राह्मणों को भोजन तथा वस्त्र आदि भेंट कर उनका सम्मान करने से परिवारिक सुख-शांति एवं संपन्नता बनी रहती है तथा वंश वृद्धि का वरदान भी मिलता है। यह भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा 2 सितंबर (बुधवार) को देव तथा ऋषि तर्पण के साथ पितृपक्ष शुरू होगा। वहीं आश्विन कृष्ण प्रतिपदा गुरुवार से पितरो का तर्पण, श्राद्ध व पिंडदान किया जाएगा। 2 सितंबर से शुरू होकर 17 सितंबर (गुरुवार) तक चलने वाले इस पक्ष में धार्मिक कार्य की मनाही होगी लेकिन पितरों से आशीर्वाद पाने की अच्छा अवसर होगा। इस बार पितृ पक्ष में सभी तिथियां मौजूद होंगे इसीलिए पूरे दो साल बाद 15 दिनों का पितृपक्ष होगा। पितृपक्ष से एक दिन पहले भाद्रपद पूर्णिमा यानि 2 सितंबर को अगस्त मुनी और देवताओं की पूजा की जाती है और इनके नाम से तर्पण किया जाएगा। वैदिक कर्मकांड रीति के अनुसार बताया गया है कि पितृपक्ष में पिता, पितामह, प्रपितामह तथा मातृ पक्ष में माता, पितामही, प्रपितामही इसके अलावे नाना पक्ष में मातामह, प्रमातामह, वृद्धप्रमातामह वहीं नानी पक्ष में मातामही प्रमातामही, वृद्ध प्रमातामही के साथ-साथ अन्य गोलोकवासी संबंधियों का गोत्र एवं नाम लेकर तर्पण किया जाएगा। जानकारों के अनुसार जिन लोगों की मृत्यु के दिन की सही जानकारी ज्ञात न हो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि को करना चाहिए। वहीं अकाल मृत्यु होने पर भी अमावस्या के दिन ही श्राद्ध करना चाहिए। जिसने आत्महत्या की हो या जिनकी हत्या हुई हो, ऐसे लोगों का श्राद्ध चतुर्थी तिथि के किया जाना चाहिए। पति जीवित हो और पत्नी की मृत्यु हो गई हो, तो उनकी श्राद्ध नवमी तिथि को करना चाहिए। वहीं साधु एवं सन्यासियों का श्राद्ध एकादशी तिथि को किया जाता है, बाकि सभी का उनकी तिथि के अनुसार किया जाता है। कहा गया है कि श्राद्ध को ही पितरों का यज्ञ कहते हैं। शास्त्रों में तीन ऋण बताए गए हैं- पितृ ऋण, देव ऋण और गुरु ऋण। ये तीन ऋण बहुत महत्व रखते हैं। विष्णु पुराण के अनुसार, श्राद्ध से तृप्त होकर पितृ ऋण समस्त कामनाओं को तृप्त करते हैं। मनुष्य लोक में पिता मृत्यु समय अपना सब कुछ पुत्र या पुत्री को सौंप देते हैं। इसलिए संतान पर पितृ ऋण होता है। पितृपक्ष में अपने पितरों को श्रद्धा सुमन अर्पित करना चाहिए। पितृपक्ष में जल और तिल से तर्पण करना चाहिए। इस दौरान किए गए श्राद्ध कर्म और दान-तर्पण से पितरो को तृप्ति मिलती है, वे खुश होकर अपने वंशजों को सुखी और संपन्न जीवन का आशीर्वाद देते हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म करने की परंपरा हमारी संस्कृति विरासत है। पितरो तक केवल दान ही नहीं बल्कि हमारे भाव भी पहुंचते हैं।

इस वर्ष 02 सितंबर आश्विन कृष्ण प्रतिपदा से 17 सितंबर आश्विन कृष्ण अमावस्या तक पितृपक्ष रहेगा। 16 सितंबर को पितृपक्ष का चतुर्दशी तिथि है, इसी दिन शस्त्रादि से मृत्यु को प्राप्त हुए पितरों का श्राद्ध किया जाता है। इसके बाद 17 सितंबर को अमावस्या तिथि में स्नान-दान सहित सर्वपैत्री अमावस्या का श्राद्ध एवं पितृ विसर्जन का महालया पर्व के रूप में संपन्न होगा। इस तिथि को अमावस्या सूर्योदय से लेकर शाम 04:56 बजे तक है। अत: सर्वपितृ तर्पण का कार्य 17 सितंबर को करते हुए ब्राह्मण भोजन कराकर पितरों की विदाई का कार्य किया जाएगा।

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