श्रीयंत्र की पूजा से दस महाविद्याओं की स्वयं प्राप्त होती है कृपा - महंत अशोक गिरी

वैन (भिवानी ब्यूरो - हरियाणा) :: सिद्ध पीठ के बाबा जहर गिरी आश्रम के पीठाधीश्वर अंतर्राष्ट्रीय श्रीमहंत अशोक गिरी के द्वारा आयोजित कार्यक्रम में अंतर्राष्ट्रीय श्रीमहंत अशोक गिरी ने कहा कि श्रीयंत्र की पूजा से दस महाविद्याओं की कृपा भी स्वयं ही प्राप्त हो जाती है. जिनकी अलग-अलग उपासना अत्यंत कठिन और दुर्लभ है। श्रीयंत्र अपने आप में रहस्यपूर्ण है। यह सात त्रिकोणों से निर्मित है। मध्य बिन्दु-त्रिकोण के चतुर्दिक् अष्ट कोण हैं, उसके बाद दस कोण तथा सबसे ऊपर चतुर्दश कोण से यह श्रीयंत्र निर्मित होता है। यंत्र ज्ञान में इसके बारे में स्पष्ट बताया गया है, चतुर्भि: शिवचक्रे शक्ति चक्रे पंचाभि:। नवचक्रे संसिद्धं श्रीचक्रं शिवयोर्वपु:॥ रहस्यमय श्रीविद्या के यंत्र स्वरूप को श्रीयंत्र या श्रीचक्र कहते हैं. यह एकमात्र ऐसा यंत्र है, जो समस्त ब्रह्मांड का प्रतीक है. इससे मनुष्य के जीवन के सभी लक्ष्य प्राप्त होते हैं।

उन्होंने कहा कि श्री शब्द का अर्थ लक्ष्मी, सरस्वती, शोभा, संपदा, विभूति से किया जाता है। श्रीयंत्र का सीधा तात्पर्य श्री विद्या से है. जो कि साधक को लक्ष्मी़, संपदा, विद्या आदि की श्री देने वाली विद्या है. इसे ही दुनिया में श्रीविद्या के नाम से जाना जाता है। त्रिपुरसुंदरी राजराजेशवरी की कृपा श्री यंत्र की पूजा के बिना अधूरी है। उन्होंने कहा कि श्रीयंत्र को यंत्रों का राजा माना जाता है। इसका स्थान सभी यंत्रों में सर्वोच्च है, इसका प्रभाव कलियुग में कामधेनु की तरह होता है, जो कि अपनी साधना करने वाले साधक को धन-ऐश्वर्य, संतति के साथ मान-सम्मान और प्रतिष्ठा भी प्रदान करने में सक्षम है। श्री यंत्र वो कल्पवृक्ष है, जिसके पास में होने मात्र से साधक की सारी कामनाएं परिपूर्ण हो जाती हैं. शास्त्र और पुराण इस बात के साक्षी हैं कि श्रीयंत्र अपने दर्शन मात्र से ही श्रद्धा रखने वालों को अद्भुत लाभ देना शुरु कर देता है।

नवरात्रि में श्री विधा साधना करने से माँ आदि शक्ति ललिता त्रिपूरसुंदरी की कुंकुम द्राक्षा से अर्चन करने से सम्पूर्ण मनोरथ पूर्ण होते है।

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