बदतमीज़, बकलौत और निराधार पत्रकारिता ; क्या कहती है आपकी समझ?

वैन (हेमन्त कुमार शर्मा - एडिटर एशिया) :: हमेशा आगे दिखने की चाह में आज के दिन भारतीय मीडिया वैश्विक स्तर पर अपना रुतबा खुद-ब-खुद गर्त में ले जा रहा है। एक ही चीज़ को इतना बढ़ा-चढ़ा कर दिखाना या कहीं बाल की खाल निकालना जिसको ना आता हो वो यहां आकर सीख सकता है। अभी पिछले दिनों हैदराबाद में एक असहनीय गैंगरेप को अंजाम दिया गया। उन्होंने जो करना था उस कृत्य को एक बार में अंजाम दे दिया और पुलिस ने आगे की कार्रवाई के लिए उन्हें दबोच लिया, लेकिन इन सबसे ऊपर नम्बर बटोरने में आगे रहा भारतीय मीडिया। जो उस बेचारी लड़की की आपबीती ऐसे दिखती रही मानो खुद ही यह उस बेमौत मारी गई लड़की का हर पल - हर क्षण दुष्कर्म कर रही हो। उसके बाद एक निजी चैनल (ए बी पी) ने तो सारी हदें तब पार कर दी जब उन्होंने इसको भुनाने के लिए "ऑपरेशन अंधेरा" चला दिया। अब सवाल यह है कि यह चैनल इसमें दर्शना क्या चाहता था यह ही अभी तक साफ़ नहीं हो पाया है। एक पत्रकार महिला को रात के गुम अंधेरे में खुला सड़क पर उतार इस चैनल ने यह दिखा दिया कि हम नम्बर बटोरने के लिए किसी भी हद तक गिर सकते हैं। उस अंधेरे में खड़ी लड़की के पास कोई भी आ कर रुकता और उससे वहां खड़े रहने का कारण पूछ उसके गंतव्य तक छोड़ने का ऑफर देता। वह तो भला हो ऊपर वाले का कि उसके साथ किसी ने कुछ गलत नहीं किया और अगर कर देता तो चैनल का कैमरामैन तो सिर्फ कैमरा ही चलता रह जाता लेकिन चैनल को जरूर लेने के देने पड़ जाते। लेकिन उनका जाता क्या कुछ भी नहीं। 2-4 दिन पुलिस और सरकार के खिलाफ आवाज़ उठाते, तेज़-तेज़ चिल्लाते और चुप बैठ जाते। इससे इतर, चैनल ने अंधेरे में खड़ी लड़की की मदद को आये सभी हाथों को दुष्कर्मी बता दिया। यह कहां का न्याय है इस निजी सोच का? यह इनको किसने कह दिया कि हर सहारा देने वाला हाथ दुष्कर्मी था। क्या आपने किसी का सहारा लिया या ऐसे ही उसका बखान कर दिया? गिरने की भी हद होती है मेरे दोस्त, इतना गिरो कि उठ कर फिर से संभल जाओ, इतना नहीं की गिरने के बाद कोई उठाने वाला ही ना मिले और तुम और नीचे धंसते जाओ। बदतमीज़, बकलौत और निराधार पत्रकारिता की भी हद्द होती है कोई।

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