दुष्ट प्रवृत्तियों और अमंगल विचारों का नाश कर सत् का मार्ग दिखाने वाली होली !

वैन (दिल्ली ब्यूरो - 15.03.2022) :: फाल्गुन पूर्णिमा के दिन आने वाली होली का त्योहार संपूर्ण देश में बडे हर्षाेल्लास के साथ मनाया जाता है। दुष्ट प्रवृत्तियों और अमंगल विचारों का नाश कर सत् प्रवृत्ति का मार्ग दिखाने वाला उत्सव है होली! होली मनाने के पीछे अग्नि में वृक्ष रूपी समिधा अर्पण कर उसके द्वारा वातावरण की शुद्धि करने का उत्तम भाव है। इस लेख से होली के त्योहार का महत्त्व और उसे मनाने की शास्त्रीय पद्धति की जानकारी देने का प्रयास किया गया है।

होली पर्व की तिथि : देश भर में फाल्गुनी पूर्णिमा से लेकर पंचमी तक के 5 - 6 दिनों में कहीं 2 दिन, तो कहीं 5 दिनों तक यह उत्सव मनाया जाता है।

होली के त्योहार के लिए समानार्थक शब्द : इस त्यौहार को उत्तर भारत में होरी, दोलायात्रा तथा गोवा एवं महाराष्ट्र राज्यों में शिमगा, होळी, हुताशनी महोत्सव, होलिका दहन और दक्षिण में कामदहन कहा जाता है। बंगाल में दौला यात्रा के नाम से होली का पर्व मनाते हैं। इसी को वसंतोत्सव’ अथवा वसंतागमनोत्सव’ अर्थात वसंत ऋतु के आगमन के उपलक्ष्य में मनाया जाने वाला उत्सव भी कहा जा सकता है।

होली के त्योहार का इतिहास : प्राचीन काल में ढूंढा अथवा ढौंढा नामक राक्षसी गांव में प्रवेश कर छोटे बच्चों को कष्ट पहुंचाती थी । लोगों ने उसे गांव से बाहर निकालने के लिए बहुत प्रयास किए; परंतु उन्हें इसमें सफलता नहीं मिली। अंततः लोगों ने उसे घिनौनी गालियां और शाप देकर, साथ ही सर्वत्र अग्नि प्रज्वलित कर भयभीत कर भगा दिया’, ऐसा भविष्योत्तर पुराण में कहा गया है।

एक अन्य कथा के अनुसार एक बार भगवान शिव तप में लीन थे। जब वे समाधि अवस्था में थे, तब मदन ने उनके अंतःकरण में प्रवेश किया । तब ‘मुझे कौन चंचल बना रहा है’, ऐसा बाेलकर शिवजी ने आंखें खोली और मदन को देखते ही भस्म कर डाला । दक्षिण के लोग कामदेव के दहन के उपलक्ष्य में यह पर्व मनाते हैं । इस दिन मदन की प्रतिकृति बनाकर उसका दहन किया जाता है । होली में मदन पर विजय प्राप्त करने की क्षमता है; इसलिए होली का पर्व मनाया जाता है।

फाल्गुन पूर्णिमा के दिन पृथ्वी पर संपन्न प्रथम महायज्ञ की स्मृति के रूप में प्रतिवर्ष फाल्गुन पूर्णिमा के दिन संपूर्ण भारत में ‘होली’ के नाम से यज्ञ होने लगे।

होली का महत्त्व:

विकारों की होली जलाकर जीवन में आनंद की वर्षा करने की सीख देने वाला त्योहार : फाल्गुन महीने में आने वाला ‘होली’ का उत्सव विकारों की होली जलाने वाला त्यौहार है । विकारों की जटिलता दूर कर नए उत्साह के साथ सत्त्वगुण की ओर अग्रसर होने के लिए हम तैयार हैं’, इसका मानो वह प्रतीक ही है । शेष बचा सूक्ष्म अहंकार भी होली की अग्नि में नष्ट हो जाता है । वह शुद्ध सात्विक बन जाता है । उसके उपरांत आनंद की वर्षा करते हुए रंगपंचमी आती है । एकत्रित होकर नाचते-गाते हुए जीवन का आनंद लिया जाता है । प.पू. परशराम पांडे महाराज ने कहा है कि श्रीकृष्ण-राधा ने रंगपंचमी के द्वारा आनंद की वर्षा करने के लिए कहा है।

होली अपने दोषों, व्यसनों और बुरी आदतों को दूर करने का तथा सद्गुणों को ग्रहण करने का अवसर है।

होली का पर्व मनाने की पद्धति : संपूर्ण देश में मनाई जाने वाली होली के त्योहार में बच्चों से लेकर बडों तक सभी लोग उत्साह के साथ सम्मिलित होते हैं। होलिका की रचना करने की और उसकी सजावट करने की पद्धति भी स्थान के अनुसार बदलती जा रही है, ऐसा आजकल देखने को मिलता है।

सामान्यतः देवालय के सामने अथवा किसी सुविधाजनक स्थान पर पूर्णिमा की सायंकाल को होली प्रज्वलित की जाती है । संभवतः ग्राम देवता के सामने होली की रचना की जाती है । श्री होलिका पूजन के स्थान को गोबर से लीपकर और रंगोली बनाकर सुशोभित किया जाता है । अलग अलग क्षेत्रों में वहां की संस्कृति अनुसार होलिका दहन हेतु मध्य में एरंड, नारियल का पेड, सुपारी का पेड अथवा गन्ना खडा किया जाता है । उसके चाराें आेर उपले और सूखी लकडियों की रचना की जाती है । घर के मुख्य पुरुष को शुचिर्भूत होकर और देश काल् का उच्चारण कर ‘सकुटुम्बस्य मम ढुण्ढाराक्षसीप्रीत्यर्थं तत्पीडापरिहारार्थं होलिका पूजनमहं करिष्ये ।’ का संकल्प लेकर उसके उपरांत पूजा कर भोग लगाना चाहिए और उसके उपरांत ‘होलिकायै नमः ।’ बोलकर होली प्रज्वलित करनी चाहिए । होलिका जलाने के उपरान्त परिक्रमा कर उल्टे हाथ को मुँह पर रखकर शोर मचाना चाहिए । होली के पूर्ण जल जाने के उपरांत उस पर दूध और घी छिडककर शांत करना चाहिए । उसके पश्चात श्री होलिकादेवी को चने की दाल और गुड़ से बनी मीठी रोटी का भोग और नारियल अर्पण करना चाहिए और उपस्थित लोगों में उसे प्रसाद के रूप में बांटना चाहिए। नारियल के टुकडे कर उसे बांटना चाहिए और संपूर्ण रात नृत्य गायन में व्यतीत करना चाहिए।

होली की इस प्रकार पूजा करनी चाहिए :

प्रदीपानन्तरं च होलिकायै नमः इति मन्त्रेण पूजाद्रव्य-प्रक्षेकात्मकः होमः कार्यः। - स्मृति कौस्तुभ

अर्थ : अग्नि प्रज्वलित करके होलिकायै नमः’ इस मंत्र के साथ पूजा द्रव्य समर्पित कर होम करना चाहिए।

निशागमे तु पूज्येयं होलिका सर्वतोमुखैः। - पृथ्वीचंद्रोदय

अर्थ : रात होने पर सभी को होलिका (सूखी लकडियां और उपले सजाकर प्रज्वलित किए हुए अग्नि) का पूजन करना चाहिए।

होलिका की पूजा करते समय बोलने हेतु आवश्यक मंत्र

अस्माभिर्भयसन्त्रस्तैः कृता त्वं होलिके यतः। अतस्त्वां पूजयिष्यामो भूते भूतिप्रदा भव॥ - स्मृतिकौस्तुभ

अर्थ : हे होलिका, (सूखी लकडियां और उपले सजाकर प्रज्वलित की गई अग्नि), हम भयग्रस्त हुए हैं; इसलिए हमने आपकी रचना की। अब हम आपकी पूजा कर रहे हैं। हे होलिका की विभूति! आप हमें वैभव प्रदान करें।

होली के दूसरे दिन किए जाने वाले धार्मिक कृत्य

प्रवृत्ते मधुमासे तु प्रतिपत्सु विभूतये। कृत्वा चावश्यकार्याणि सन्तर्प्य पितृदेवताः॥ वन्दयेत् होलिकाभूतिं सर्वदुष्टोपशान्तये। - स्मृतिकौस्तुभ

अर्थ : वसंत ऋतु की प्रथम प्रतिपदा के दिन समृद्धि प्राप्त हो; इसके लिए सुबह नित्यकर्म से निवृत्त होकर पूर्वजों को तर्पण करें और उसके उपरांत सभी दुष्ट शक्तियों की शांति के लिए होलिका की विभूति को वंदन करना चाहिए।

(कुछ पंचांगों के अनुसार फाल्गुन पूर्णिमा के दूसरे दिन आने वाली प्रतिपदा से वसंत ऋतु का आरंभ होता है।)

होली के दिन की होलिका राक्षसी नहीं है!

भक्त प्रल्हाद को लेकर अग्नि में लेकर बैठी हुई ‘होलिका’ राक्षसी थी। होली के दिन बोले जाने वाले मंत्रों में जो ‘होलिका’ के नाम का जो उल्लेख आता है, वह फाल्गुन पूर्णिमा के लिए है, उस राक्षसी का नहीं है। फाल्गुन पूर्णिमा के दिन लकडियां सजाकर होम करते हैं; इसलिए इस तिथि को होलिका कहा जाता है, इसका उल्लेख उक्त श्लोकों में आया ही है।

आयुर्वेद के अनुसार होली के लाभ - ठंड के दिनों में शरीर में संग्रहित कफ सूर्य की गर्मी से पतला हो जाता है और उसके कारण विकार उत्पन्न होते हैं । होली के औषधीय धुएं के कारण कफ न्यून होने में सहायता मिलती है। सूर्य की गर्मी के कारण कुछ मात्रा में पित्त बढता है। हँसने, गाने आदि से मन प्रसन्न होकर पित्त शांत होता है। होली के समय बोले जाने वाले रक्षोघ्न मंत्रों से अनिष्ट शक्तियों का कष्ट भी न्यून होता है’, ऐसा गोवा के वैद्य मेघराज माधव पराडकरने बताया है।

होली में हुल्लड़ मचाने के कृत्य का शास्त्र : हिन्दुओं के इस पवित्र पर्व के दिन होली प्रज्वलित करने के उपरांत हुल्लड़ मचाने की प्रथा सर्वत्र देखने को मिलती है। होली के दिन अपशब्दों का उच्चारण करना अथवा गालियां देना आदि कृत्य परंपरा के रूप में की जाती है। इसे धर्मशास्त्र में आधार नही है। संस्कृत भाषा में एक भी गाली नहीं है, ऐसे में गालियां देना हिंदुओं के उत्सवों का भाग कैसे हो सकता है? होली के दिन हुल्लड़ करते हुए गालियां देना धर्मशास्त्र की दृष्टि से अयोग्य है । मन की दुष्ट प्रवृत्ति को शांत करने के लिए यह विधि है। फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा पर पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र आता है। उस नक्षत्र की देवता ’भग' है। इसलिए भग के नाम से हुल्लड़ करना, यह एक प्रकार की पूजा है। वह उस देवता का सम्मान ही समझें, कोई विकृति नहीं, अपितु उसका भी शास्त्र है; परंतु आजकल उसका अतिरेक कर एक-दूसरे के मध्य की शत्रुता को उजागर करने के लिए भी हुल्लड़ मचाया जाता है।

होलिकोत्सव में होने वाली अप्रिय घटनाएं रोकना हमारा धर्म कर्तव्य है!: आज के समय में होली के नाम पर कई अप्रिय घटनाएं होती है, उदा. लूट खसोट करना, दूसरों के पेड काटे जाते है, संपत्ति की चोरी होती है, साथ ही रंगपंचमी के नाम पर एक-दूसरे पर गंदे पानी के गुब्बारे फेंक कर मारना, दूसरों के शरीर को घातक रंग लगाना आदि अप्रिय घटनाएं होती हैं। इन अप्रिय घटनाओं के कारण धर्म हानि होती है और उन्हें रोकना हमारा धर्म कर्तव्य ही है। इसके लिए समाज का उद्बोधन किया जाना चाहिए और उद्बोधन के उपरांत भी अप्रिय घटनाएं होती हों, तो पुलिस में शिकायत करनी चाहिए। सनातन संस्था अन्य समविचारी संगठनों और धर्म प्रेमियों को साथ लेकर इस संदर्भ में विगत कई वर्षाें से जनजागरण अभियान चला रही है। आप भी इसमें सम्मिलित हो सकते हैं। संपूर्ण वर्ष में होने वाली पेडों की कटाई से जहां वन उजड रहे हैं, उसकी अनदेखी कर तथाकथित पर्यावरणवादी और धर्म विरोधी संगठन वर्ष में एक ही बार आने वाली होली के समय में ‘कचरे की होली जलाने जैसे अभियान चलाते हैं । इन धर्मविरोधियों का वास्तविक उद्देश्य धार्मिक परंपराओं को नष्ट करना है, यही इससे दिखाई देता है । इसलिए हिन्दुओं की धार्मिक परंपराओं में किसी को हस्तक्षेप नहीं करने देना चाहिए । हिन्दुओं, धर्म विरोधियों के जुमलों की बलि न चढ कर पर्यावरणपूरक और अप्रिय घटनाओं विरहित; परंतु धर्मशास्त्र से सुसंगत होली मनाइए !

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