आगरा के दो गांवों में बारूद की खेती से चलती है रोजी-रोटी

- एत्मादपुर के गांव धौर्रा और नगला खरगा में बनाए जाते हैं देसी बम

वैन (ब्रज किशोर शर्मा - आज हम आपको आगरा के एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं जो बारूद के ढेर पर बैठा है। गांव के कुछ परिवार और उनके बच्चों से लेकर महिलाएं और बुजुर्ग तक बारूद के बीच 24 घंटे अपना जीवन यापन करते हैं और उनका यही रोजी-रोटी कमाने का एकमात्र जरिया भी है।

आगरा की तहसील एत्मादपुर के गांव धौर्रा और नगला खरगा की जहां दिवाली से 3 माह पहले ही देसी बम बनाने का कार्य शुरू हो जाता है। वैसे तो प्रशासन के अनुसार नगला खरगा में 4 लाइसेंस और एक लाइसेंस गाव धौर्रा में होने की बात की जाती है, लेकिन जानकारी है कि इन दोनों गांव में करीब 1 दर्जन से अधिक लोग बारूद से अपनी जान पर खेलने का काम करते हैं। यह इन ग्रामीणों का कोई शौक नहीं है बल्कि रोजी रोटी कमाने का एक जरिया है, जो पीढ़ियों से चला आ रहा है।

जब हमारे संवाददाता ने गांव धौर्रा के बाहर खेतों में बने कुछ मकानों में देसी बम बनाने के काम की जानकारी करनी चाही तो पहले ग्रामीणों ने किसी भी तरह की जानकारी देने से साफ इनकार कर दिया, लेकिन जब उनको समझाया गया कि वे उनके खतरों से खेलने के काम को उजागर करने आए हैं तब जाकर एक बम बनाने वाले लायक सिंह ने कहा कि मैं अपने खेतों पर बन रहे बमों के बारे में बताने को तैयार हूं लेकिन उन्होंने देसी बम बनाते हुए साथियों का वीडियो बनवाने से साफ इनकार कर दिया। उनका कहना था कि वह पिछले 2 वर्षों से मंदी से जूझ रहे हैं इसलिए चैनलों पर अपना चेहरा दिखा कर अपने काम में और अड़ंगा नहीं डलवाना चाहते।

अन्य जानकारी के अनुसार इन देसी पटाखा बनाने के कारखानों पर 10 परिवारों के बच्चे महिलाएं और बुजुर्ग यह काम करते हैं। लाइक सिंह ने बताया कि उनके यहां केवल प्रशिक्षण प्राप्त किए हुए लोग ही काम करते हैं। हालांकि लायक सिंह के इस कारखाने पर किसी भी आपदा से निपटने के उपकरण भी दिखाई दिए लेकिन जिन लोगों ने नगला खरगा में अपने कारखाने दिखाने से इनकार कर दिया उनकी मंशा पर कहीं न कहीं सवालिया निशान खड़ा होता है कि आखिर जब लाइसेंस प्राप्त कर वे अपना काम कर रहे हैं तो फिर उन्हें कैमरे के सामने आने से क्या डर है?

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