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वैन (भिवानी ब्यूरो - हरियाणा) :: श्रीमद्भागवद् गीता अर्जुन के अलावा धृतराष्ट्र एवं संजय ने सुनी थी। अर्जुन से पहले गीता का परम पावन ज्ञान श्रीहरि ने सूर्यदेव को सुनाया था। गीता का दूसरा नाम गीतोपनिषद है। भागवत गीता का सार हमारे जीवन को एक पल में बदल सकता है। यह विचार कृष्णा कॉलोनी भागवत स्थित तपोभूमि परमहंस योग आश्रम धाम के प्रांगण में श्रीमद् भागवत कथा रूद्र महायज्ञ में पहुंचे भक्तों को संबोधित करते हुए महाराज कृष्णानंद सरस्वती ने व्यक्त किए । उन्होंने कहा कि महाभारत काल में दिया गया गीता का उपदेश आज भी प्रासंगिक है। गीता का उपदेश समस्त जगत के लिए है। महाराज कृष्णानंद सरस्वती ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में बताया है कि कोई भी व्यक्ति कर्म नहीं छोड़ सकता। प्रकृति व्यक्ति को कर्म करने के लिए बाध्य करती है। जो व्यक्ति कर्म से बचना चाहता है वह ऊपर से तो कर्म छोड़ देता है पर मन ही मन उसमें डूबा रहता है। मनुष्य का स्वार्थ उसे नकारात्मकता की ओर धकेलता है। अगर इस जीवन में खुश रहना चाहते हैं तो स्वार्थ को कभी अपने पास आने मत दो। जो इंसान अपने नजरिए को सही प्रकार से इस्तेमाल नहीं करता है वह अंधकार में धंसता जाता है। महाराज कृष्णानंद सरस्वती ने कहा कि मनुष्य अपने विश्वास से निर्मित होता है जैसा वो विश्वास करता है वैसा वह बन जाता है। जो मनुष्य मन को वश में कर लेता है, उसका मन ही उसका सबसे अ'छा मित्र बन जाता है। जो मनुष्य मन को वश में नहीं कर पाता है, उसके लिए वह मन ही उसका सबसे बड़ा शत्रु बन जाता है। इस अवसर पर स्वामी मदन मोहन अलंकार ने मन मोहने वाले भजनों का गायन किया ।आश्रम के प्रांगण में सुबह सवेरे भक्तों ने पहुंचकर रूद्र महायज्ञ में आहुति दी।
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