बिहार ब्यूरो (पटना) :: सृजनात्मकता व रचनात्मकता के विकास के लिए शिक्षा में संगीत का होना आवश्यक है। प्राचीन काल की शिक्षा में साधनों, विषयों व उपविषयों का अभाव था, लेकिन संगीत विषय को अनिवार्य रूप से सिखाया जाता रहा। जीवन में कलाओं का एक विशेष महत्त्व है। ठीक उसी तरह संगीत के बिना जीवन अधूरा है। शैल संगीत कला महाविद्यालय के प्रो. प्रतिभा रानी ने कहा कि संगीत के बिना शिक्षा अधूरी है। शिक्षा के माध्यम से बच्चे का सर्वांगीण विकास होना अपेक्षित है तथा शिक्षा का अंतिम उद्देश्य केवल मानवीय विकास है। सामाजिक व व्यक्तिगत रुचि व अभिरुचियों को सामने रखकर सरकार को ऐसे पाठ्यक्रम का निर्माण करवाना चाहिए, जिससे बच्चों के विकास को केंद्रित कर उनके व्यक्तित्व विकास व शैक्षणिक अवसर प्रदान कर सकें। शारीरिक, मानसिक, सांस्कृतिक, आर्थिक मनोवैज्ञानिक, बौद्धिक या आध्यात्मिक विकास किसी भी व्यक्तिगत की शैक्षणिक उपलब्धि है।
संगीत शिक्षा के बिना कोई भी शिक्षण प्रणाली अधूरी है। सृजनात्मकता व रचनात्मकता के विकास के लिए शिक्षा में संगीत का होना आवश्यक है।
प्राचीन काल की शिक्षा में साधनों, विषयों व उपविषयों का अभाव था, लेकिन संगीत विषय को अनिवार्य रूप से सिखाया जाता रहा। जीवन में कलाओं का एक विशेष महत्त्व है। ठीक उसी तरह संगीत के बिना जीवन अधूरा है। बिना संगीत विषय के पूर्ण शिक्षण को कैसे स्वीकार किया जा सकता है। मानवीय निर्माण की प्रक्रिया में संगीत एक मुख्य घटक रहा है। संगीत अपने आप में एक अनुशासन है और व्यक्तिगत निर्माण की प्रक्रिया में एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। संगीत तो ऋषि-मुनियों, किन्नरों, गंधर्वों, देवी-देवताओं तथा वेदों की वाणी है।
मानवीय अर्थों, मूल्यों, भावनाओं, अभिव्यक्तियों व संवेगों को समझने के लिए संगीत के माध्यम से मानवीय शृंगार होना ही चाहिए, अन्यथा संगीतविहीन शिक्षा तो संस्कारहीन शिक्षा ही है। संगीत शिक्षा को आकर्षक बनाने के साथ ये प्रयास बेरोजगारी को दूर करने में भी सार्थक हो सकते हैं। यह तभी संभव हो सकता है जब प्राथमिक, माध्यमिक, उच्च, उच्चतर पाठशालाओं के साथ-साथ सभी महाविद्यालयों में संगीत अध्यापकों की चरणबद्ध तरीके से नियुक्ति हो। पाठशालाओं में सुबह की प्रार्थना सभा की सुरमय शुरुआत होना प्रत्येक पाठशाला की आवश्यकता है। पाठशालाओं के अनेक सांस्कृतिक कार्यक्रम, प्रतियोगिताएं, वार्षिक पारितोषक वितरण समारोह व अन्य सृजनात्मक व रचनात्मक कार्यक्रम बिना संगीत के पूर्ण नहीं होते। प्रार्थना गीत, देश प्रेम गीत, राष्ट्रीय गीत व राष्ट्रगान बिना संगीत के सही भावनाओं का संचार नहीं कर सकते। अपनी संस्कृति, लोकगीतों, लोक वाद्यों, रीति-रिवाजों व जन्म से लेकर मृत्यु तक के संस्कारों को समझने के लिए संगीत शिक्षा अति आवश्यक है। विद्यालयों में बिना संगीत शिक्षक सांस्कृतिक कार्यक्रम का सफल आयोजन पाठशाला प्रशासन के लिए मुश्किल हो जाता है।
पाठशालाओं में संगीत विषय को अनिवार्य रूप से लागू करने, चरणबद्ध तरीके से संगीत अध्यापकों व तबला वादकों की नियुक्ति करने की सोच से संगीत शिक्षा को नया आयाम मिलेगा।
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