वैन (हेमन्त कुमार शर्मा - दिल्ली) :: त्योहारों के देश भारत के सबसे बड़े त्यौहार दीपावली को किस विधि और किस समय मनाया जाना चाहियें? वर्ष 2018 की दीपावली क्या विशेष ले कर आई है आपके लिये? क्यों आज की युवा पीढ़ी और बड़े बुज़ुर्गों के पूजा करने में असमानता है और क्या हो उसका समाधान? ऐसे ही कई सवालों के जवाब दिये 2012 में वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के लिए राष्ट्रपति अर्ली कैरियर पुरस्कार विजेता और मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में विजन और कम्प्यूटेशनल न्यूरोसाइंस के प्रोफेसर रह चुके विश्व विख्यात गुरूजी पवन सिन्हा ने। जिनसे बात की वैन, अंतर्राष्ट्रीय न्यूज़ एजेंसी के संपादक एशिया, हेमन्त कुमार शर्मा ने : -
प्रश्न - गुरूजी, हिन्दू धर्म के लिए कितना बड़ा है दीपावली का त्यौहार?
उत्तर - दीपावली का जो त्यौहार है ये पांच दिन का है, जिसका प्रारम्भ होता है धनतेरस, नरक चतुर्दशी, फिर दीपावली, गोवर्धन पूजा और पांचवें दिन भाई-दूज का पर्व मनाया जाता है। इन त्योहारों के बारे में गहराई से जानना बेहद जरुरी है। जिससे धर्म के प्रति और आपस में सद्भाव बना रहे।
प्रश्न - युवाओं और बुज़ुर्गों के त्यौहार मनाने में बहुत बड़ा अंतर होता है, उसको कैसे भरा जाये?
उत्तर - युवा पीढ़ी जो होती है वो थोड़ी स्वछन्द प्रकृति की होती है। उसमे खेलने की भावना अधिक होती है, एंटरटेनमेंट की भावना अधिक होती है। वो उतनी गंभीरता से या बैठ कर पूजा नहीं कर सकते जैसे बुज़ुर्ग लोग कर सकते हैं। थोड़ा उसमे युवाओं को छूट देनी चाहिये। आप आनन्द कीजिये, म्यूजिक बजाइये, नाच-गा कर त्यौहार मनाइये। इसमें कोई हर्ज़ नहीं है बल्कि बड़े इसमें खुद भी पार्टिसिपेट करें तो अच्छा रहेगा। लेकिन युवाओं को ये जरूर बताएं कि हम क्यों इस पूजा में बैठ रहे हैं? इस पूजा में बैठने के पीछे का कारण क्या है, इससे मिलेगा क्या ये छोड़ दें। इससे वह भी पूजा में ज्यादा वक्त गुजारेंगे, पूजा में बैठना शुरू कर देंगे तो सामंजस्य बन जायेगा।
प्रश्न - वर्ष 2018 की दीपावली किस तरह विशेष है और पर्व को मनाने का वास्तविक तरीका क्या होना चाहिये?
उत्तर - दीपावली से श्रीराम का सम्बन्ध जोड़ा जाता है लेकिन दीपावली श्रीरामजी के अयोध्या आगमन से पूर्व भी मनाई जाती थी और खूब सारे दीपक उस समय भी जगाये जाते थे। दीपावली में सबसे ज्यादा ध्यान रखने योग्य बात यह है कि मेरा जब पेट भर रहा हो तो किसी दूसरे का पेट खाली ना रहे, इसके लिये भी मुझे प्रयास करना चाहिये। इसीलिए पहले थालियाँ बनती थी छोटी-छोटी, जिसमे खील और बताशे होते थे, थोड़ी भोजन सामग्री होती थी, मिठाई होती थी साथ-साथ तीन या पांच दीपक उसमे होते थे, जिसको पड़ोस के घर में बच्चे देने जाते थे। मेरे ख्याल से उस प्रथा को फिर से प्रारम्भ करना चाहिये। घर के बच्चों और युवाओं को कहा जाए कि एक-एक थाली पकड़ो और ऐसी किसी जगह पर जाओ जहां कोई गरीब भूखा बैठा हो या जिसके घर में दीपक नहीं जल रहे हों। तो दीपावली का जो मूल उदद्देश्य है वो तब जा कर पूर्ण होगा। दूसरी चीज़ यह है कि दीपावली में निशीत काल होता है और एक सिंह लगन होती है। ये रात में पड़ते हैं। जैसे इस वर्ष निशीत काल पड़ेगा रात में 11:22 के बाद लगभग। तो ये समय होता है सिद्धि-साधना का। आप बैठें, ध्यान करें, मंत्र जपें, अपने ईष्ट का सिमरन करें या अन्य कोई सामग्री आदि उन्हें सिद्ध करनी हो तो वह सिद्ध कर सकते हैं। इस प्रकार से दीपावली मूलतः मनाई जाती थी और मनाई जानी चाहिये। इसके आप इतर कुछ और करना चाहें तो बहुत अच्छी बात है, त्यौहार है, खूब खाएं - पियें, आनंद लें।
प्रश्न - दीपावली पूजन का समय?
उत्तर - पहली बात तो इसमें यह है की 9:32 मिनट तक दीपावली की समस्त पूजाएं पूर्ण हो जानी चाहियें। पहले तो क्या हुआ, जैसे अमावस्या रहती थी पूरी रात तो लोग अपने ऑफिसेस का, बिज़नेस का, दुकान का यह काम सब निपटा कर रात में भी पूजा कर लिया करते थे, सिंह लगन में। लेकिन इस बार वो संभव नहीं होगा क्योंकि रात को 9:32 तक दीपावली की अमावस्या पूर्ण हो जायेगी। उसके बाद पूजन नहीं होगा। तो पूजन का समय फिर क्या बचता है, शाम को 5 बजकर 27 मिनट से लेकर 8 बजकर 7 मिनट तक के बीच में। इतने समय में आप पूजन करें तो निश्चित रूप से पूजा स्वीकार होगी और माँ लक्ष्मी प्रसन्न होंगी।
प्रश्न - दीपावली के अगले दिन मनाया जाने वाला गोवर्धन पर्व किस तरह से मनाया जाना चाहियें?
उत्तर - गोवेर्धन पूजा, श्रीकृष्ण के गोवर्धन पर्वत से जुड़ा हुआ पर्व है। श्रीकृष्ण ने गो-रक्षा के लिये गोवेर्धन पर्वत में एक रास्ता बनाया था जिसमे गोकुल गाँव के लोग और सारी गो-माताएं वहां पर सुरक्षित हो गयी थी। श्रीकृष्ण जी को इस दिन प्रणाम करना चाहियें और उनके निमित्त कुछ बालकों को भोजन आदि देना चाहियें जिसमे मक्खन, मिश्री और तुलसी अवश्य हो। दूसरी चीज़, जो इस त्यौहार का दूसरा नाम है जो श्रीकृष्ण जी के भी पूर्व से चला आ रहा था वो है "अजबली"। "अज" का मतलब अनाज होता है ना कि बकरा, लोग गलत इसको समझते हैं। इस दिन अपने हिस्से का अनाज हमें जरूरतमंदों में बांटना होता है। तो हम अनाज की एक आकृति बना लेते हैं कोई, या ढेरी बना लेते हैं और उसको विभाजित कर लेते हैं कि यह हमारे घर का और यह दान का। ऐसे कर के उसको निकाल देते हैं, जिसे कहते हैं "अजबली"। इस दिन हमें अनाज जरूर निकालना चाहियें और लोगों में बांटना चाहियें।
प्रश्न - पर्वों के दौर का अंतिम त्यौहार भाईदूज का त्यौहार होता है, जो अपने उस दिन घर से दूर हों, उनके लिए आपकी क्या सलाह होगी?
उत्तर - हँसते हुए गुरूजी कहते हैं, यहां पर मैं थोड़ा मॉडर्न हो कर टेक्नोलॉजी के साथ जाना चाहूंगा। आजकल जो युवा या परिवार के लोग दूर-दराज में बैठे हैं वो अपने विडिओ फ़ोन्स का इस्तेमाल कर अपने परिवार के साथ शामिल हो सकते हैं। मान लीजिये बहन अमेरिका में और भाई सिंगापुर में है जो तिलक करने आ-जा नहीं सकते तो वह फ़ोन से बात कर विडिओ कांफ्रेंस कर सकते हैं। स्काइप का इस्तेमाल कर सकते हैं और आपसी भाईचारा बढ़ा सकते हैं। मान लीजिये तिलक नहीं हो पाया दूर रहने के कारण तो बहन ने टीका भेज दिया भाई को लिफ़ाफ़े में, चलेगा। भाई ने उपहार भेज दिया, चलेगा। क्योंकि बहुत सारी मजबूरियां हैं और प्रभु भी समझते हैं कि क्या मजबूरियां मानव-मात्र के साथ हैं? इसलिये, इन चीजों से कोई बहुत परेशानी नहीं होने वाली होती है जीवन में और समय के अनुसार परिस्थितियों में, पूजा पद्व्तियों में बदलाव आते रहे हैं और 21 वीं शताब्दी में भी आ रहे हैं।
प्रश्न - आपका सन्देश आज के युवाओं के लिये?
उत्तर - सबसे पहले मैं यह कहना चाहता हूँ कि हिन्दू क्या है, कौन है, उसका क्या इतिहास है, उसके धर्म-शास्त्र कौन से हैं, ये समझने की जरुरत है। हर पर्व के पीछे एक बहुत बड़ा सामजिक, आर्थिक कारण है। वैज्ञानिक कारण है, उसको गहराई से समझने की जरुरत है और आज की युवा पीढ़ी को उसे बताने की जरुरत है। उसके बाद युवा पीढ़ी धर्म से, पर्व से जुड़ना शुरू होगी और आप देखेंगे कि बड़े-बुज़ुर्ग तो सिर्फ सोचते रह जायेंगे और वो भाग-भाग कर पूरा पर्व ऐसा मना लेंगे जिसकी कल्पना आप सपने में भी नहीं कर सकते। युवाओं को जुड़ने के लिये धर्म की सामाजिकता, और आर्थिक पक्ष और वैज्ञानिक्ता को समझाना बहुत जरुरी है और कोई भी पर्व अपूर्ण है यदि हम उस पर्व पर किसी अन्य जरूरतमंद व्यक्ति की मदद नहीं करते हैं तो। इन दो बातों का यदि हम सब ध्यान रखेंगे तो पर्व हमारा और भी हंसी-ख़ुशी भरा होगा और अति सुन्दर होगा।
आपको बता दें कि, पवन जी ने परियोजना प्रकाश की स्थापना की जो मानवतावादी उद्देश्य के साथ बढ़ते दृश्य न्यूरोसाइंस को जोड़ती है। परियोजना प्रकाश भारत के कुछ सबसे अधिक अनिश्चित क्षेत्रों में आंखों की देखभाल शिविर स्थापित करता है, और 2003 से 700 से अधिक कार्यात्मक रूप से अंधे बच्चों को निःशुल्क आंखों की स्वास्थ्य जांच प्रदान करता है। बच्चों का बिना किसी शुल्क के इलाज किया जाता है, भले ही वे प्रोफ़ाइल में फिट न हों, जिससे उन्हें गुरूजी के शोध के लिए योग्य बनाया जा सके। मोलिनेक्स की समस्या नामक दर्शन के पुराने पहेली को हल करने के लिए प्रसिद्ध मीडिया आउटलेट में उनका काम दिखाया गया है। चार्ली रोज़ पर साक्षात्कार के लिए वह कुछ वैज्ञानिकों में से एक हैं।
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