आत्म हत्या से मरे इन्सानों की आत्माएं प्रेत रूप में प्रत्यक्ष सी दिखाई देती हैं और अदृश्य भी हो जाती हैं - पं श्रीराम शर्मा

वैन (रामा शंकर प्रसाद - पटना, बिहार) :: बुड्ढे मनुष्यों की वासनाएं स्वभावतः ढीली पड़ जाती हैं, इसलिये वे मृत्यु बाद बहुत जल्दी निन्द्राग्रस्त हो जाते हैं। लेकिन वे तरुण जिनकी वासनाएं प्रबल होती हैं, बहुत काल तक विलाप करते फिरते हैं। खासतौर से वे लोग जो अकाल मृत्यु, अपघात या आत्महत्या से मरे होते हैं। अचानक और उग्र वेदना के साथ मृत्यु होने के कारण स्थूल शरीर के बहुत से परमाणु सूक्ष्म शरीर के साथ मिल जाते हैं इसलिए मृत्यु के उपरान्त उनका शरीर कुछ जीवित, कुछ मृतक, कुछ स्थूल, कुछ सूक्ष्म सा रहता है। ऐसी आत्माएं प्रेत रूप में प्रत्यक्ष सी दिखाई देती हैं और अदृश्य भी हो जाती हैं। साधारण मृत्यु से मरे हुओं के लिए यह नहीं है कि वह तुरन्त ही प्रकट हो जावें उन्हें उसके लिए बड़ा प्रयत्न करना पड़ता है, और विशेष प्रकार का तप करना पड़ता है, किन्तु अपघात से मरे हुए जीव सत्ताधारी प्रेत के रूप में विद्यमान रहते हैं और उनकी विषम मानसिक स्थिति नींद भी नहीं लेने देती। वे बदला लेने की इच्छा से या इन्द्रिय वासनाओं को तृप्त करने के लिए किसी पीपल के पुराने पेड़ की गुफा, खण्डहर या जलाशय के आस पास पड़े रहते हैं, और जब अवसर देखते हैं, अपना आस्तित्व प्रकट करने या बदला लेने की इच्छा से प्रकट हो जाते हैं। इन्हीं प्रेतों को कई तान्त्रिक सब साधन करके या मरघट जगा कर अपने बस कर लेते हैं और उनसे गुलाम की तरह काम लेते हैं इस प्रकार बांधे हुए प्रेत इस तांत्रिक से प्रसन्न नहीं रहते वरन् मन ही मन बड़ा क्रोध करते हैं और यदि मौका मिल जाय तो उन्हें मार डालते है। बंधन सभी को बुरा लगता है, प्रेत लोग छूटने में असमर्थ होने के कारण अपने मालिक का हुक्म बजाते हैं, पर सरकस के शेर की तरह उन्हें इससे दुख रहता है। आबद्ध प्रेत प्रायः एक ही स्थान पर रहते हैं और बिना कारण जल्दी जल्दी स्थान परिवर्तन नहीं करते।

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