गुरु का पहला कर्तव्य - राष्ट्र और धर्म की रक्षा करना

- काल की आवश्यकता को पहचानते हुए राष्ट्र और धर्म की रक्षा करना सिखाना आज गुरु का पहला कर्तव्य है !

वैन (दिल्ली ब्यूरो - 12.07.2022) :: जिस प्रकार साधकों को साधना सिखाना गुरु का धर्म है, उसी प्रकार राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए समाज को जागृत करना भी गुरु का धर्म है। हमारे पास आर्य चाणक्य, समर्थ रामदास स्वामी जैसे गुरुओं का आदर्श है। आज हमारे देश और धर्म की स्थिति बहुत ही दयनीय है। समय की आवश्यकता को समझते हुए आज गुरु का पहला कर्तव्य शिष्यों और समाज को राष्ट्र और धर्म की रक्षा करना सिखाना है। यह कैसे करना है इस लेख में निर्देशित किया गया है।

भगवान और गुरु का काम एक ही है!

'बृहस्पति पृथ्वी पर चलते हुए ईश्वर के समान है। भक्तों पर सदा कृपा बरसाने वाले भगवान, संतों की रक्षा और धर्म की रक्षा के लिए राक्षसों पर भी अस्त्रों की वर्षा करते हैं । हालांकि, हम भगवान के इस दूसरे रूप को भूल जाते हैं जो राक्षसों का नाश करता है और धर्म की रक्षा करता है । एक गुरु, जो हृदय से ईश्वर से एकरूप हो गया है, वह ईश्वर के इस क्षेत्र कार्य से कैसे अलग रह सकता है?

राष्ट्र और धर्म की रक्षा सिखाने वाले गुरुओं के कार्यों को याद करें!

1. आर्य चाणक्य: तक्षशिला विश्वविद्यालय में 'आचार्य' के पद पर आर्य चाणक्य की नियुक्ति के बाद, उन्होंने न केवल स्वयं को विद्या दान में धन्य माना, अपितु चंद्रगुप्त जैसे कई शिष्यों को क्षात्र-उपासना का मंत्र भी दिया, जिनके साथ उन्होंने विदेशी यूनानियों को हराया और हिंदुस्तान को एक संघ बनाया।

2. भगवान श्रीराम: समर्थ रामदास स्वामी (जिन्होंने वास्तविक भगवान राम राय को देखा) ने न केवल राम नाम का जाप किया, अपितु समाज, बल की उपासना करें इसलिए कई स्थानों पर मारुति की स्थापना की और शिवाजी महाराज जी को अनुग्रह दे कर उनसे हिंदवी स्वराज्य की स्थापना करवा कर ली।

3. स्वामी वरदानंद भारती और महायोगी गुरुदेव काटेस्वामीजी : स्वामी वरदानंद भारती और महायोगी गुरुदेव काटेस्वामीजी, जिनका हाल के दिनों में निधन हो गया, वे भी ऐसे ही महान गुरु थे। धर्म और अध्यात्म सिखाने के साथ-साथ इन महापुरुषों की रचनाओं ने सुप्त हिन्दू समाज को राष्ट्र और धर्म के कर्तव्यों के प्रति जगाने का काम किया!

ऐसे कई गुरु हैं जिन्होंने अपने आचरण से अपने शिष्यों और समाज को भी राष्ट्र और धर्म की रक्षा के पवित्र कार्य के लिए एक आदर्श स्थापित किया है।

क्यों सभी गुरु राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए काम नहीं करते हैं?

1. चूंकि अधिकांश गुरु तारक उपासक होते हैं, इसलिए उनकी वृत्ति तारक के साथ-साथ सहिष्णु होती है । इसलिए ऐसे गुरुओं के मन में राष्ट्र और धर्म की रक्षा के विचार नहीं आते।

2. कुछ गुरुओं को गुरु पद के रूप में नियुक्त किए जाने पर जिन शिक्षाओं का प्रसार के लिए कहा जाता है, उनमें राष्ट्र और धर्म की रक्षा का विचार ही नहीं रहता; क्योंकि उस समय इसकी इतनी आवश्यकता नहीं रहती । गुरु की आज्ञाकारिता के रूप में, ऐसे गुरु 'उनके गुरु ने जो कहा' उसका प्रचार करते हैं । इससे आगे जाकर, राष्ट्र धर्म की रक्षा की आवश्यकता को ध्यान में नहीं रखते।

3. कुछ गुरु 'गुरु' की उपाधि के योग्य नहीं होते।

4. कुछ गुरु अहंकारी होने के कारण राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए काम करने वाले संतों से सीखने की प्रवृत्ति नहीं रखते।

5. लोकेषणा और धन लालसा के शिकार हुए झूठे गुरुओं को आसुरी शक्तियों ने पकड़ लिया है, इसलिए आसुरी शक्तियाँ राष्ट्र और धर्म की रक्षा के विचार को उनके मन में प्रवेश नहीं करने देती हैं।

राष्ट्र और धर्म पर वर्तमान संकट!

पाठकों को यह बताने की आवश्यकता नहीं है कि आजकाल कैसा है।

1. भ्रष्ट राजनीतिक नेताओं द्वारा किए गए घोटालों को देखकर, भारत माता कह सकती हैं, 'अंग्रेजों के शासन में भी मुझे इतना लूटा नहीं गया होगा !'

2. गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले 65% भारतीयों की आंखों में आंसू हो सकते हैं और कह सकते हैं, 'भगवान, अगले जन्म में हम भारत में पैदा नहीं होना चाहते!'

3. मूर्तियों के विनाश और मंदिरों के विनाश को देखकर, देवता कह रहे होंगे, 'हम हिंदुस्तान में हैं या मुगलिस्तान में हैं?'

इतना ही नहीं, देश पर आतंकवादी हमले, गोहत्या, धर्मांतरण... जैसे संकटों के एक या एक से अधिक उदाहरण दिए जा सकते हैं।

गुरु द्वारा आज देश और धर्म की रक्षा की शिक्षा क्यों देनी चाहिए?

1. ईश्वर प्राप्ति के लिए साधकों को साधना बताना, जैसे सांप्रत काल में गुरु का धर्म है वैसे ही राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए समाज को जगाना भी गुरु का आपातकालीन धर्म है।

2. गुरु शिष्य को जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त होने के लिए साधना सिखाते हैं। किन्तु यदि राष्ट्र और धर्म सुरक्षित नहीं हैं तो साधना कैसे हो सकती है? इसके लिए गुरु का कर्तव्य है कि वह न केवल शिष्यों में अपितु हर देशभक्त में राष्ट्रीय चरित्र और धर्म प्रेम का निर्माण करे।

3. माया में रह कर साधना करते हुए गुरु अपनी दिव्यता अर्थात देवत्व को जागृत करते हुए ब्रम्हत्व को प्राप्त करते है । अपने स्वयं के देवत्व को जागृत रखते हुए 'दूसरे में देवत्व देखना' गुरु की साधना की आगे की यात्रा होती है । तो क्या गुरु उस व्यक्ति के बारे में कुछ अनुभव नहीं करेंगे जिसमें वह देवत्व देखना चाहते हैं ? यदि धर्मबन्धुओं को सताया जा रहा है, तो क्या गुरु को उनके लिए खेद नहीं होगा ? यदि राष्ट्र पीड़ित है तो क्या गुरु स्वस्थ जीवन जी सकते हैं?

संक्षेप में, आज गुरु का मुख्य कर्तव्य शिष्यों और समाज के समय की आवश्यकता को पहचानते हुए राष्ट्र और धर्म की रक्षा के लिए साधना करना सिखाना है। राष्ट्र और धर्म की रक्षा, यह उनकी, साथ ही शिष्य और समाज की भी कार्यानुसार साधना ही है।

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