कोरोना काल मे मृत्तक पत्रकारों के परिजनो को आर्थिक सहायता के नाम छलावा क्यूँ - खबरी लाल...!!!

~ बडे मियाँ तो बडे मियाँ ' छोटे मियाँ सुभान अल्लाह

दिल्ली ब्यूरो (विनोद तकिया वाला* - 15.06.2021) :: वैश्विक महामारी कोरोना के दंश से प्रजातंत्र के सच्चे पहरी व प्राण कहे जाने वाले पत्रकार बन्धु भी काल के गाल मे समा गये है। कोरोना के कहर से जब सम्पूर्ण विश्व कहरा रहा है ' ऐसे समय मे कई परिवारो ने अपने मित्र - परिजनो बन्धु - वान्धवो को खोया है। यह सच है कि विधि का विधान है कि जिसने भी इस पृथ्वी पर जन्म लिया है ,उसकी मृत्यु निश्चित है । लेकिन उसका भी एक समय र्निधारित होता है । मै इस बहस मे पडना नही चाहता हूँ ' क्यूँकि मै ना ही कोई ज्योतिष हुँ , ना ही कोई भविष्य वक्ता । कोरोना काल मे एक बात तो कडुवा सच है कि जिसने भी अपनो का खोया है उसे खोने का दर्द तो उसे मालुम है तभी तो किसी ने सच ही कहां है कि" पीर पराई ना जानि रे "। विगत दिनो उत्तर प्रदेश सरकार ने कोरोना काल में जान गंवाने वाले पत्रकारों के आश्रित परिजनों को 10 लाख रुपये का आर्थिक मदद देने की घोषणा की है।

इसी संदर्भ में प्रदेश सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग ‘ निंदेशक के हस्‍ताक्षर से 01 जून 2021 को एक पत्र जारी किया गया है विभागीय पत्र के अनुसार दिवंगत पत्रकारों के आश्रितों को राज्य सरकार से आर्थिक सहायता प्राप्‍त करने के लिए विभाग को कुछ साक्ष्‍यों व प्रमाण पत्र के साथ दो प्रतियों में अपना आवेदन पत्र उपलब्‍ध कराना होगा।

सूचना एवं जनसंपर्क विभाग द्वारा जारी किए गए है इस पत्र में 1 )सर्वप्रथम "मान्‍यता प्राप्‍त पत्रकारों " होने की बात की गई है ।जबकि प्रदेश ही नहीं देश भर में मान्‍यता प्राप्‍त पत्रकारों की संख्‍या ‘नगण्‍य’ है, क्‍योंकि किसी भी पत्रकार को मान्‍यता दिलाना अखबार के मालिकों की मर्जी पर निर्भर होता है।अखबार के मालिक अपने यहां कार्यरत पत्रकारों को खुद भी मान्‍यता क्‍यों नहीं देते है ' इसके पीछे छिपे कारणों से सभी मीडिया कर्मी भलीभांति परिचित है । हमे इसके बारे में ज्‍यादा कुछ बताने की जरूरत नहीं है।

2) पत्र की दूसरी शर्त के क्रम संख्‍या 1 पर गौर करें, जिसके अनुसार कोरोना से मारे गए ‘गैर मान्‍यता प्राप्‍त’पत्रकार के आश्रितों को सरकार से आर्थिक मदद पाने के लिए उन्‍हें विभाग के सामने मीडिया संस्‍थान से निर्गत प्रेस कार्ड एवं नियुक्‍ति पत्र प्रस्‍तुत्त करना होगा। क्रम संख्या 2 की शर्त पूरी करने के लिए संस्‍थान द्वारा ई एस आई/ई पी एफ की कटौती के साक्ष्‍य देने होंगे। क्रम संख्‍या 3 के मुताबिक मृत पत्रकार के आश्रितों को मुख्‍य चिकित्‍सा अधिकारी द्वारा प्रति हस्‍ताक्षरित कोविड-19 से मृत्‍यु होने का प्रमाण पत्र संलग्‍न करना होगा।

क्रम संख्‍या 4 में न्‍यूज़ चैनल्‍स से संबद्ध पत्रकारों का जिक्र करते हुए उनके आश्रितों के लिए बहुत ही अजीबो-गरीब शर्तें रखी गई हैं। क्रम संख्‍या 5 में कहा गया है कि संबंधित पत्रकार का विवरण ‘पहले से ही’ सूचना कार्यालय में अंकित रहा हो जिससे यह साबित हो सके कि कोरोना का शिकार हुआ मृतक पत्रकार संबंधित संस्‍थान में कार्यरत था।

क्रम संख्‍या 6 में स्‍पष्‍ट है कि ये सारी शर्तें पूरी करने के बाद मृतक पत्रकार के परिजनों में से किसे ये आर्थिक सहायता दी जाएगी। पहली बात उन पत्रकारों की जो सूचना विभाग द्वारा रखी गई शर्तों में से किसी शर्त को पूरा नहीं करते, लेकिन नामचीन मीडिया संस्‍थानों के लिए बकायदा कार्य करते हैं। उनके पास भी इतने साक्ष्य व प्रमाण पत्र नही होते है।

सूचना एवं जनसंपर्क विभाग बहुत अच्‍छी तरह इस कड़वी सच्‍चाई से वाकिफ है कि प्रत्‍येक प्रिंट मीडिया संस्‍थान अपने यहां कार्यरत स्‍टाफ में से पांच प्रतिशत स्‍टाफ को भी शासकीय मान्‍यता नहीं दिलवाना तो दुर की बात है , कई मीडिया संस्‍थान दस प्रतिशत स्‍टाफ को भी अपना कर्मचारी तक नहीं मानता । परिणाम स्वरूप वह उसे ना तो कोई प्रेस आई कार्ड मुहैया कराता है और ना ही नियुक्‍ति पत्र देता है। ब्लकि औपचारिकता पुरी करने के लिए एक कान्टेट पेपर पर हस्ताक्षर करा कर लेते है तथा पारिश्रमिक व अन्य सुविधाओ के नाम पर मामूली सा मानदेय पकडा देते है । जहाँ तक ग्रामीण व सुदूर कस्‍बा स्‍तर पर काम करने वाले पत्रकार की बात है ' सरकार व प्रशासन की छुपी नही है । जब संस्थानो द्वारा अपने मीडिया कर्मीओ को प्रेस कार्ड और नियुक्‍ति पत्र तक जारी नही करते है तो ऐसी स्‍थिति में वह उन कर्मचारियों का ई एस आई/ई पी एफ क्‍यों काटेगा और क्‍यों उनका कोई वेतन निर्धारित करेगा। ऐसे मै कैसे कोई मृत्तक पत्रकार को कोरोना वॉरियर्स घोषित किया जायेगा ' |जब कोरोना वॉरियर्स नही घोषित होगा तो उनके आश्रित परिजनो को सरकारी आर्थिक सहायता मिल पायेगीl

जहाँ तक वेब मीडिया की बात है तो उसे सरकार किस श्रेणी में रखना चाहती है, शायद सरकार को भी नहीं पता। आज की स्‍थिति और सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के पत्र को देखकर तो यही लगता है कि ऊपर से नीचे तक सारा सरकारी अमला पत्रकारों के साथ एक भद्दा मजाक करने पर आमादा है। एक ऐसा मजाक जिसके परिणाम आगे चलकर बहुत गंभीर हो सकते हैं।

बेहतर होगा कि सरकार और सरकारी विभाग समय रहते यह तय कर लें कि वो किसे पत्रकार मानेंगे और किसे नहीं। बडे मीडिया संस्‍थानों घराने के इशारों पर नाचेंगे अथवा सख्‍ती के साथ इस क्षेत्र में भी उन नियमों का अनुपालन कराएंगे, जो न सिर्फ समय की मांग हैं बल्‍कि सबके हित में जरूरी भी हैं। हालाकि पी आई वी (सुचना प्रसारण मंत्रालय ,भारत सरकार ) के द्वारा पूर्व से पत्रकार क्लायण कोष का निर्माण किया गया है ' जिसके अन्तगर्त पीडित परिवार के लिए आश्रितो को 5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने का प्रावधान है ' जो कि पत्रकारो के कल्याण के बहुत अच्छा कार्य कर रही है ,लेकिन उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकार ने मृतक परिवार के आश्रितो के लिए 10 लाख की आर्थिक सहायता की घोषणा महज हवा हवाई लगता है। क्योकि उत्तर प्रदेश मे अगले वर्ष राज्य विधान सभा के चुनाव होने वाली है। चुनाव में पत्रकारो की भुमिका अहम होती है ये बातें राज्य की भाजपा वर्तमान सतारूढ सरकार अच्छी तरह जानती है। राज्य सूचना एवम जनसम्पर्क विभाग र्निदेशक के पत्र के अनुसार कागजी खाना पूर्ति म्रतक परिवार के आश्रितो द्वारा जो कि पहले से ही अपनो का खोने से दुःखी व परेशान है उपर से विभागीय लम्बी चौड़ी कागजी कार्यवाही ' कैसे पुरी कर पायेगे।

प्रदेश की सरकार को इस बारे मे पुन विचार करना चाहिए ! यहाँ पर मुझे एक परचलित कहावत याद आ रही है कि " बडे मियाँ तो बडे मियाँ . छोटे मियाँ सुभान अल्लाह " शत प्रतिशत सटीक बैठता है। उत्तर प्रदेश की सरकार को पुनः अपने इस पत्र के शर्ते पर गंभीरता पूवर्क मंथन करने की अपील कई पत्रकार संगठन के द्वारा की गई थी तभी कांग्रेस शासित राज्य राजस्थान सरकार के सुचना जन समर्पक विभाग के 11 जुन के विभागीय पत्र मे कोरोना संक्रमित पत्रकार की मृत्यु होने पर उनके आश्रित / परिवार को आर्थिक सहायता प्राप्त करने पात्रता की शर्ते मे नरमी दिखाते हुए , कोरोना से संक्रमित होने या इलाज के दौरान मृत्यु होने पर अधिस्वीकृत पत्रकारो को 50 लाख रुपये की तत्तकाल आर्थिक सहायता मुहैया कराने के सम्बंध में कल जन सम्पर्क विभाग के निदेशक पुरुषोत्तम शर्मा ने एक परिपत्र जारी किया है । पत्र की प्रति सभी जिला जन सम्पर्क अधिकारी और जिला कलेक्टर को प्रेषित की गई है । विभाग के संयुक्त निदेशक अरुण जोशी को इसके लिए नोडल अफसर तैनात किया गया है।

यहाँ पर मुझे एक परिचलित कहावत याद आ रही है कि " बडे मियाँ तो बडे ' छोटे मियाँ सुभान अल्लाह " शत प्रतिशत सटीक बैठता है। राज्य स्थान सरकार के जन सम्पर्क विभाग के 11 जुन 21 के पत्र को देखते हुए राज्य सरकारो व केंद्र सरकार को कोरोना से संक्रमित मृतक पत्रकारो के आश्रित सदस्यो के आर्थिक सहायता प्राप्त करने पत्र पात्रता व राशि पर पुनः गंभीरता पुर्वक विचार करना चाहिए।

इसी के साथ आप सभी से विदा लेते है ' यह कहते हुए:-
ना ही काहुँ से दोस्ती 'ना ही काहूँ से बैर॥

खबरी लाल तो माँगे, सबकी खैर॥ पुनः आप के समक्ष तीरक्षी नजर से तीखी खबर के साथ उपस्थित होगे।
* विनोद तकिया वाला - मान्यता प्राप्त स्वतंत्र पत्रकार

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