हरियाणा ब्यूरो :: भूमिगत जल के लगातार दोहन के कारण प्रदेश के 13 जिलों, अम्बाला, करनाल, कुरुक्षेत्र, कैथल, हिसार, झज्जर, भिवानी, रिवाड़ी, महेन्द्रगढ़, सिरसा, सोनीपत, पानीपत, जींद में डार्क जोन में आ गए हैं। धान की पैदावार , बढ़ती जनसंख्या और औधगिक विकास इसके पीछे मुख्य कारण हैं। डार्क जोन वाले इलाकों में सरकार सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं और रेन वाटर हार्वेस्टिंग द्वारा भू-जल का स्तर संतुलित बनाये रखना चाहती है ताकि किसानों को सिंचाई की कमी न हो। इसके लिए करनाल स्थित केंद्रीय मृदा लवणता अनुसन्धान संस्थान की तकनीक किसानों के लिए कारगर साबित हो रही है। संस्थान द्वारा विकसित रेन वाटर हार्वेस्टिंग और सब सरफेस ड्रिप इरिगेशन तकनीक ने खेतों में पानी की आवश्यकता को आधा कर दिया है।
प्रदेश सरकार ने भी किसानों को धान की बजाए फसल चक्र अपनाने की अपील की है ताकि पानी के दोहन को रोका जा सके।संस्थान के प्रमुख वैज्ञानिक डॉ एच एच जाट ने कहा कि हरियाणा में धान के कारण भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है , अगर हमने जल प्रबंधन नही किया तो स्थिति विकराल रूप ले सकती है। उन्होंने कहा कि मृदा लवणता अनुसन्धान संस्थान पिछले कई सालों से जल प्रबंधन को लेकर काम कर रहा है। संस्थान की रेन वाटर हार्वेस्टिंग तकनीक और सब सरफेस ड्रिप इरिगेशन अपनाकर खेती में पानी की जरूरत को आधा किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश के विभिन्न जिलों में हमने 100 के करीब रेन वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए हैं जिनके उत्साहजनक परिणाम मिले हैं। इसके अलावा ड्रिप इरिगेशन , तालाब , कुएं और परम्परागत जल स्त्रोत को पुनर्जीवित करके भी हम भूजल स्तर को ऊपर उठा सकते हैं । अगर हमने जल्द ही इस ओर ठोस कदम नही उठाये तो आने वाले समय मे भयंकर जल संकट की स्थिति पैदा हो सकती है।
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